यह भोली मस्ती है,निर्मल चेहरों की,
उन्मुक्त हंसी है,
निष्ठुर रेत के,
गुवार में भी,
कांसे की खनक सी,
बिन आवाज के ,
कानो में बजती है,
कोमल नग्न वदन,
जो वस्त्र, कुछ के तन पर,
लगती किसी की उतरन,
रेतीली धरती पर,
वेफ़िक्र नन्हे कदम,
भूखे चेहरों का भोला पन,
देता है हमको,
गहरा जीवन दर्शन।
क्या है आगे जीवन में,
इस चिंता में,अपनाआज
क्यों खराब करें,
जो बीते कल ने दर्द दिया,
उसे क्यों याद करें,
क्यों रोज मरें,
आओ उन छडों को,
जोर से पकडें,
जो खुश चेहरे पर,
चमक के दमके,
एक पल फूटे,
हंसी के मोती से,
आगे पीछे के,
धुंधले जीवन की,
कड़वी यादों पर,
मुस्काती चांदी की
परत चढ़ा दें।
खुशी नही है दौलत में,
या जन्म हो राजमहल में,
आओ हम सब
अपना-अपना चेहरा देखें,
इस तस्बीर के दर्पण में,
क्या नही दिया जीवन नें,
साज है सज्जा,
भोजन अच्छा,
घर में गाड़ी,
मकान है पक्का,
नौकर चाकर,
खेत खलिहान,
नाते रिस्ते, दोस्त मेहमान,
पत्नी बच्चे , सब हैं अच्छे,
फिर भी शिकन - शिकन,
दुखी रहता है मन,
रोज सोचता, मुस्काउंगा,
कोठी जब नयी बनाऊंगा,
पर भूल गया, इस सबसे,
मुस्कान का क्या है रिस्ता,
दौलत से यह नहीं है आती,
बस उन होटों पर मुस्काती,
जिनके मन में ख़ुशी है बस्ती।
प्रदीप डबराल
Tuesday, October 13, 2020
यह भोली मस्ती है। (श्री प्रदीप डबराल जी द्वारा रचित)
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